प्रस्तावना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया पांच देशों की विदेश यात्रा का दूसरा पड़ाव था – त्रिनिदाद और टोबैगो। यह यात्रा ऐतिहासिक इस मायने में रही कि यह 1999 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली आधिकारिक त्रिनिदाद यात्रा थी। इस द्वीपीय राष्ट्र के साथ भारत के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक रिश्ते लंबे समय से चले आ रहे हैं, खासकर इसलिए क्योंकि यहां की 40% से अधिक आबादी भारतीय मूल की है।
इस यात्रा के दौरान भारत और त्रिनिदाद एवं टोबैगो के बीच विकास सहयोग, डिजिटल अवसंरचना, स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा सहित छह प्रमुख समझौते हुए। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र में सुधार, आतंकवाद के खिलाफ साझा बयान और ग्लोबल साउथ के लिए साझा संकल्प जैसी वैश्विक राजनीतिक चर्चाएं भी इस यात्रा का हिस्सा रहीं।
भारत-त्रिनिदाद सहयोग: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और त्रिनिदाद एवं टोबैगो के बीच रिश्ते सिर्फ राजनयिक नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी हैं। 1845 में भारतीय गिरमिटिया मजदूरों का पहला जत्था यहां पहुंचा था। आज लगभग 5 लाख से अधिक लोग भारतीय मूल के हैं, जो इस देश की जनसंख्या का 40% हिस्सा हैं। इसलिए यह संबंध केवल दो देशों के बीच नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों, दो दिलों और दो सभ्यताओं के बीच की आत्मीयता का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत और द्विपक्षीय वार्ता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का त्रिनिदाद की प्रधानमंत्री कमला परसाद-बिसेसर ने गर्मजोशी से स्वागत किया। द्विपक्षीय वार्ता में दोनों नेताओं ने स्वास्थ्य, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, कृषि, व्यापार, सूचना प्रौद्योगिकी, कानूनी क्षेत्र, खेल और कौशल विकास में सहयोग को विस्तार देने की प्रतिबद्धता जताई।
साझा समझौते: भारत-त्रिनिदाद सहयोग की नई दिशा
इस यात्रा के दौरान भारत और त्रिनिदाद एवं टोबैगो के बीच छह महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। ये समझौते आने वाले वर्षों में दोनों देशों के आपसी संबंधों को नई ऊँचाई देंगे:
- भारतीय फार्माकोपिया (Indian Pharmacopoeia) पर समझौता
यह समझौता फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में सहयोग को मजबूती देगा। इससे भारतीय दवाओं को त्रिनिदाद बाजार में बेहतर पहुंच मिलेगी और दोनो देशों के बीच औषधीय मानकों का समन्वय होगा। - त्वरित प्रभाव परियोजनाओं (Quick Impact Projects) के लिए भारतीय अनुदान सहायता
यह विकास सहयोग को सशक्त करेगा और छोटे स्तर पर त्वरित सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं के लिए सहायता उपलब्ध कराएगा। - सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम 2025-2028
इस समझौते के तहत अगले तीन वर्षों तक दोनों देशों के बीच नृत्य, संगीत, साहित्य और कला के स्तर पर गहन साझेदारी होगी। - खेलों में सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन
भारत खेल प्रशिक्षकों, उपकरणों और विशेषज्ञता के साथ त्रिनिदाद को सहयोग देगा, जिससे युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा मिलेगा। - राजनयिक प्रशिक्षण संस्थाओं के बीच सहयोग
दोनों देशों के राजनयिकों के प्रशिक्षण और आपसी अनुभवों के आदान-प्रदान के लिए विशेष कार्यक्रम संचालित किए जाएंगे। - हिंदी और भारतीय अध्ययन के लिए ICCR चेयर की पुनः स्थापना
वेस्ट इंडीज यूनिवर्सिटी में हिंदी और भारतीय अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए दो प्रोफेसरशिप पुनः स्थापित की जाएंगी, जिससे संस्कृति और भाषा को संरक्षण मिलेगा।
डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में साझेदारी
भारत ने डिजिटल क्षेत्र में जो सार्वजनिक अवसंरचना मॉडल खड़ा किया है, वह आज वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय है। त्रिनिदाद और टोबैगो ने भारत की यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को अपनाने वाला पहला कैरिबियन देश बनकर इतिहास रचा है।
- DigiLocker और अन्य डिजिटल अवसंरचना समाधानों के कार्यान्वयन में भी सहयोग पर सहमति बनी है।
- त्रिनिदाद सरकार ने भारत से राज्य भूमि पंजीकरण प्रणाली के डिजिटलीकरण में सहयोग मांगा है।
शैक्षिक, स्वास्थ्य और कृषि सहयोग: भारत के उपहार
प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिनिदाद को कई महत्वपूर्ण उपहारों की घोषणा की:
- 2,000 लैपटॉप – त्रिनिदाद के प्रमुख शिक्षा कार्यक्रम के लिए।
- 20 हीमोडायलिसिस यूनिट्स – स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूती देने के लिए।
- 2 समुद्री एम्बुलेंस – तटीय स्वास्थ्य सेवाओं के लिए।
- $1 मिलियन मूल्य की कृषि मशीनरी – खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए।
- 800 दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कृत्रिम अंग शिविर – जयपुर फुट की मदद से।
यह न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि भारत के “वसुधैव कुटुंबकम” दृष्टिकोण को भी प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत करता है।
आतंकवाद के खिलाफ साझा संदेश
दोनों देशों ने आतंकवाद की कड़ी निंदा की और इसे मानवता का दुश्मन बताया। संयुक्त बयान में कहा गया कि आतंकवाद, विशेष रूप से सीमा पार आतंकवाद, किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है। यह भारत की विदेश नीति में आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की पुष्टि है।
संयुक्त राष्ट्र सुधार और सुरक्षा परिषद में सहयोग
भारत ने लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग की है। इस संदर्भ में त्रिनिदाद और टोबैगो ने:
- भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किया।
- भारत ने त्रिनिदाद की 2027-28 के लिए अस्थायी सदस्यता का समर्थन किया।
- त्रिनिदाद ने 2028-29 के लिए भारत की सदस्यता को समर्थन देने का वादा किया।
यह परस्पर कूटनीतिक समर्थन, दोनों देशों के बीच वैश्विक मंचों पर सहयोग को गहरा बनाता है।
ग्लोबल साउथ की आवाज़ और भारत की भूमिका
प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिनिदाद की संसद में दिए अपने भाषण में कहा:
“अब समय आ गया है कि ग्लोबल साउथ को उचित स्थान मिले, एक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था का निर्माण हो और संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्थानों में सुधार हो।”
उन्होंने जलवायु संकट, खाद्य, स्वास्थ्य और ऊर्जा सुरक्षा, और उभरती तकनीकों के खतरों को उजागर किया। उनके मुताबिक:
- ग्लोबल साउथ के देश एक नया, निष्पक्ष वैश्विक व्यवस्था चाहते हैं।
- UN में सुधार की उम्मीदें अब निराशा में बदल चुकी हैं।
- भारत हमेशा विकासशील देशों की आवाज़ को मुख्यधारा में लाने की कोशिश करता रहा है।
भारत ने G20 की अध्यक्षता के दौरान भी ग्लोबल साउथ के मुद्दों को केंद्र में रखा और 150 से अधिक देशों को वैक्सीन और दवाइयाँ प्रदान कर मानवता का उदाहरण पेश किया।
सांस्कृतिक और भाषाई पुनर्जागरण
त्रिनिदाद में भारतीय त्योहारों, रामलीला, होली, और हिंदी की गूंज सुनाई देती है। प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा सांस्कृतिक रिश्तों के पुनर्संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। ICCR द्वारा वेस्ट इंडीज यूनिवर्सिटी में हिंदी और भारतीय अध्ययन की दो चेयर पुनः स्थापित करना इस दिशा में बड़ी पहल है।
खेल, कौशल विकास और युवा सहयोग
दोनों देशों ने खेलों में सहयोग पर सहमति जताई। भारत त्रिनिदाद को कोचिंग, उपकरण और विशेषज्ञता उपलब्ध कराएगा। कौशल विकास के लिए भारत के प्रशिक्षण कार्यक्रम (जैसे iTEC) को विस्तारित किया जाएगा ताकि त्रिनिदाद के युवा तकनीकी और पेशेवर दक्षता हासिल कर सकें।
निष्कर्ष: एक नई शुरुआत, एक साझा भविष्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की त्रिनिदाद और टोबैगो यात्रा ने न केवल ऐतिहासिक कूटनीतिक विरासत को पुनर्जीवित किया, बल्कि उसे आधुनिक विकासात्मक सहयोग की नई परिभाषा भी दी। भारत-त्रिनिदाद संबंध अब सांस्कृतिक आत्मीयता से आगे बढ़कर रणनीतिक साझेदारी की ओर अग्रसर हैं।
- भारत ने इस यात्रा के माध्यम से एक स्पष्ट संदेश दिया है: विकासशील देशों की साझेदारी, समानता और न्याय के आधार पर भविष्य का निर्माण किया जाएगा।
- भारत, अब वैश्विक दक्षिण की केवल एक आवाज नहीं, बल्कि उसका नेतृत्वकर्ता बनकर उभर रहा है।
यह यात्रा यह साबित करती है कि भारत अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि एक वैश्विक उत्तरदायी शक्ति के रूप में अपना स्थान सुनिश्चित कर रहा है – जो संवाद, सहयोग और समावेश के आधार पर एक नया विश्व व्यवस्था बनाने की दिशा में अग्रसर है।
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