कर्नाटक की सियासत में पिछले कुछ समय से चल रही अटकलों और अंदरूनी खींचतान के बीच मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने रुख को स्पष्ट करते हुए दो टूक कहा है कि वे पूरा पांच साल का कार्यकाल मुख्यमंत्री के रूप में पूरा करेंगे। मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “हां, मैं मुख्यमंत्री के रूप में बना रहूंगा। इसमें शक क्यों है?” सिद्धारमैया ने बीजेपी और जेडीएस द्वारा नेतृत्व परिवर्तन की अफवाहों को खारिज करते हुए कहा, “क्या वे कांग्रेस हाईकमान हैं?”
उनकी इस स्पष्टता के कुछ ही मिनटों बाद उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी प्रतिक्रिया दी और कहा, “मेरे पास और क्या विकल्प है? मुझे उनका समर्थन करना ही है।” यह बयान ऐसे समय आया है जब यह कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी में अंदरूनी खेमेबाजी बढ़ रही है और कुछ विधायक नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मई 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला था। 224 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 135 सीटें जीतीं। इस बड़ी जीत के बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ था कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा — सिद्धारमैया या डीके शिवकुमार?
हालांकि, विधायक दल के बहुमत का समर्थन सिद्धारमैया को मिला, और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) अध्यक्ष की दोहरी जिम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन तब से लेकर अब तक पार्टी के अंदर एक अलक्षित खींचतान जारी रही है।
डीके शिवकुमार का सफाई भरा बयान
डीके शिवकुमार ने भी नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों से खुद को अलग करते हुए कहा है,
“मैंने किसी से मेरे समर्थन में बयान देने के लिए नहीं कहा। जब एक मुख्यमंत्री है, तो ऐसी बातों की कोई आवश्यकता नहीं है। पार्टी हाईकमान जो भी निर्णय लेगा, मैं उसका पालन करूंगा।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि पार्टी में किसी तरह की असहमति या नाराज़गी नहीं है, बल्कि विधायकों को ज़िम्मेदारी और जवाबदेही सौंपी जा रही है। उन्होंने साफ कहा कि जो विधायक मर्यादा से बाहर बयानबाज़ी करेंगे, उनके खिलाफ नोटिस जारी किया जाएगा।
विधायकों का खुला समर्थन शिवकुमार को
हालांकि पार्टी के भीतर से आ रही आवाज़ें एक अलग कहानी बयां करती हैं। विधायक इक़बाल हुसैन ने हाल ही में एक सार्वजनिक बयान में दावा किया कि 138 में से 100 विधायक डीके शिवकुमार का समर्थन करते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि नेतृत्व परिवर्तन की मांगों पर कांग्रेस हाईकमान ने ध्यान नहीं दिया तो पार्टी 2028 में सत्ता में वापस नहीं आ पाएगी।
हुसैन के बयान ने कांग्रेस नेतृत्व को असहज कर दिया है। हाल ही में डीके शिवकुमार ने हुसैन को कारण बताओ नोटिस जारी करने की बात कही है, जिससे साफ़ है कि पार्टी इस मसले को सार्वजनिक मंच पर आने से रोकना चाहती है।
प्रियंक खड़गे का पलटवार
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खड़गे ने इस पूरे विवाद को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने NDTV को दिए इंटरव्यू में कहा,
“जब खुद मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कह चुके हैं कि नेतृत्व परिवर्तन का कोई सवाल नहीं है, तो इस मुद्दे पर चर्चा क्यों? अभी हमारे सामने ऐसा कोई मसला नहीं है।”
सिद्धारमैया की ‘बांदे’ जैसी सरकार
सिद्धारमैया ने अपने गृह जिले मैसूरु के दौरे के दौरान पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा, “यह सरकार ‘बांदे’ (चट्टान) की तरह मजबूत है और पांच साल तक चलेगी।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार और नेतृत्व को लेकर कोई संकट नहीं है।
यह बयान स्पष्ट रूप से पार्टी और आमजन को यह संकेत देने के लिए था कि कांग्रेस सरकार स्थिर है और अंदरूनी उठापटक से विचलित नहीं होगी।
हाईकमान की रणनीति: संतुलन बनाना
कांग्रेस नेतृत्व इस समय बेहद संतुलित रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। वे नहीं चाहते कि आंतरिक मतभेद सार्वजनिक हों या इससे सरकार की स्थिरता पर सवाल खड़े हों। पार्टी हाईकमान की कोशिश है कि सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच संतुलन बना रहे ताकि सरकार अपने कार्यकाल के अंत तक चली जाए।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिवकुमार को भविष्य में मुख्यमंत्री पद देने का “रोटेशनल प्लान” हो सकता है, लेकिन फिलहाल पार्टी का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनाव और 2028 के विधानसभा चुनावों की तैयारी पर है।
निष्कर्ष
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार भले ही स्थिर हो, लेकिन आंतरिक राजनीति और नेतृत्व की महत्वाकांक्षाएं किसी भी समय संकट पैदा कर सकती हैं। सिद्धारमैया का आत्मविश्वास और डीके शिवकुमार की ‘नरम सहमति’ फिलहाल सरकार को एकजुट रखे हुए है, लेकिन आने वाले महीनों में पार्टी को सतर्कता के साथ आगे बढ़ना होगा।
यदि कांग्रेस नेतृत्व समय रहते इन असंतोषों को संभालने में सफल होता है, तो कर्नाटक में उनकी सरकार वाकई ‘बांदे’ की तरह अडिग रह सकती है।
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