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नेवी क्लर्क द्वारा ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी लीक करने का मामला: पैसे, प्यार और जासूसी की खतरनाक साजिश

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें भारतीय नौसेना मुख्यालय, दिल्ली में तैनात एक कर्मचारी पर गोपनीय रक्षा जानकारी लीक करने का आरोप लगा है। यह मामला न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह भी दिखाता है कि आज के डिजिटल दौर में कैसे दुश्मन देशों की खुफिया एजेंसियां सोशल मीडिया और साइबर स्पेस का इस्तेमाल कर भारतीय रक्षा तंत्र में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं।

आरोपी कौन है?

गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का नाम विशाल यादव है, जो हरियाणा के रेवाड़ी ज़िले के पुन्सिका गांव का रहने वाला है। वह नौसेना भवन, दिल्ली में डॉकयार्ड निदेशालय (Directorate of Dockyard) में अपर डिवीजन क्लर्क (UDC) के पद पर कार्यरत था। बुधवार को उसे जयपुर से गिरफ्तार किया गया, जहां वह कथित रूप से एक जांच के दौरान पकड़ा गया।

क्या लीक किया गया?

विशाल यादव पर आरोप है कि उसने ऑपरेशन सिंदूर समेत कई संवेदनशील रक्षा जानकारी पाकिस्तान की एक महिला हैंडलर को साझा की। ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सेना द्वारा पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान-ऑक्यूपाइड कश्मीर (PoK) में की गई जवाबी कार्रवाई का नाम है। इसमें भारत की तीनों सेनाओं ने मिलकर सर्जिकल स्ट्राइक्स और एयर मिशन अंजाम दिए थे।

ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी के बदले मिला ₹50,000

पुलिस जांच में सामने आया है कि यादव को इस संवेदनशील जानकारी के बदले ₹50,000 मिले थे। कुल मिलाकर वह पाकिस्तान की एजेंट से लगभग ₹2 लाख ले चुका था। ये पैसे कभी बैंक ट्रांसफर से, तो कभी क्रिप्टोकरेंसी के जरिए भेजे गए। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां अब भारत में अपने एजेंट्स को पकड़ने से बचने के लिए डिजिटल माध्यमों और एनक्रिप्टेड ट्रांजैक्शंस का सहारा ले रही हैं।

जासूसी की शुरुआत कहां से हुई?

इंटेलिजेंस सूत्रों के मुताबिक, इस जासूसी का धागा फेसबुक से शुरू हुआ। एक पाकिस्तानी महिला एजेंट ने “प्रिया शर्मा” नाम से फर्जी आईडी बनाकर यादव को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी। जल्द ही दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई, जो धीरे-धीरे व्हाट्सएप और फिर टेलीग्राम जैसे एंड-टू-एंड एनक्रिप्टेड ऐप पर शिफ्ट हो गई।

यहीं से शुरू हुई असली जासूसी। पहले छोटे-मोटे दस्तावेजों की मांग की गई, जिसके बदले में उसे ₹5,000 से ₹6,000 तक की राशि दी गई। लेकिन धीरे-धीरे पाकिस्तानी एजेंट ने उसे “मोटी रकम” का लालच देकर टॉप सीक्रेट मिलिट्री इंफॉर्मेशन देने को मजबूर किया।

पैसों और लालच में फंसा विशाल यादव

आईजी (सीआईडी-सिक्योरिटी) विष्णु कांत गुप्ता ने मीडिया को जानकारी दी कि यादव पैसों के लालच में फंस गया था। इसके अलावा जांच में यह भी सामने आया है कि यादव ऑनलाइन गेमिंग का शौकीन था और शायद इसी लत के चलते वह मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर हो गया था। यह मानसिक कमजोरी ही उसके जाल में फंसने का कारण बनी।

विशाल यादव के मोबाइल फोन की फॉरेंसिक जांच में पाया गया है कि उसने एनक्रिप्टेड चैट्स, बैंक डिटेल्स और रक्षा से जुड़े संवेदनशील दस्तावेज शेयर किए हैं। कई दस्तावेजों की क्लासीफाइड रेटिंग उच्च स्तर की है, यानी वो जानकारी किसी दुश्मन देश के हाथ लगना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है।

बहु-एजेंसी जांच शुरू

विशाल यादव की गिरफ्तारी के बाद अब उसके खिलाफ संयुक्त जांच शुरू की गई है। इसमें नेवी इंटेलिजेंस, मिलिट्री इंटेलिजेंस, रॉ, एनआईए, और साइबर क्राइम विंग जैसी एजेंसियां शामिल हैं। यह जांच सिर्फ यादव की भूमिका तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह भी पता लगाया जाएगा कि क्या उसने और लोगों को भी इस जाल में फंसाया या किसी नेटवर्क का हिस्सा था।

पाकिस्तान की नई चालें

आईजी गुप्ता ने कहा कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां अब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं की फर्जी आईडी बनाकर भारतीय जवानों और कर्मचारियों को टारगेट कर रही हैं। ये “हनी ट्रैप” अब भावनात्मक रिश्ता बनाने और पैसे का लालच देने से भी आगे निकल गया है। अब ये एजेंसियां क्रिप्टोकरेंसी जैसी नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रही हैं ताकि पैसों का कोई ट्रेस न मिले।

उनका कहना है,
“पाकिस्तान की एजेंसियां लगातार नए-नए तरीकों से हमारी सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन हमारी एजेंसियां चौकस हैं और यह गिरफ्तारी उसी निगरानी और तत्परता का नतीजा है।”

राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा

इस पूरे मामले से यह बात स्पष्ट होती है कि भारत की सुरक्षा प्रणाली में कार्यरत लोअर लेवल स्टाफ भी दुश्मन देशों के निशाने पर हैं। पहले केवल सेना के उच्चाधिकारी, रणनीतिक सलाहकार या साइंटिस्ट्स को ही निशाना बनाया जाता था। लेकिन अब UDC जैसे क्लेरिकल पदों पर बैठे कर्मचारी, जिनके पास कुछ हद तक गोपनीय फाइलों की पहुंच होती है, भी जासूसी के बड़े जाल का हिस्सा बन रहे हैं।

सबक और समाधान

इस घटना के बाद कुछ अहम सवाल उठते हैं:

  • क्या रक्षा प्रतिष्ठानों में काम कर रहे कर्मचारियों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर कड़ी निगरानी हो रही है?
  • क्या इस तरह के कर्मचारियों को साइबर सिक्योरिटी और काउंटर-इंटेलिजेंस की ट्रेनिंग दी जा रही है?
  • क्या डिजिटल ट्रांजैक्शंस पर नज़र रखने के लिए पर्याप्त तकनीकी निगरानी तंत्र हैं?

इस घटना से सबक लेने की ज़रूरत है कि आज की डिजिटल युद्धभूमि में दुश्मन केवल बॉर्डर पार नहीं होता, वो फेसबुक, व्हाट्सएप और टेलीग्राम पर भी होता है। ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सिर्फ सेना को नहीं, बल्कि हर कर्मचारी को एक “डिजिटल सैनिक” के रूप में तैयार करना होगा।


निष्कर्ष:
विशाल यादव का मामला यह दर्शाता है कि कैसे एक मामूली कर्मचारी भी पूरे राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है। यह घटना न केवल सतर्कता की मांग करती है, बल्कि रक्षा क्षेत्र में काम कर रहे हर व्यक्ति के चरित्र और डिजिटल व्यवहार पर निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

सरकार और रक्षा संस्थानों को चाहिए कि वे समय-समय पर साइबर वॉरफेयर और काउंटर-हनीट्रैप प्रशिक्षण जैसी कार्यशालाएं आयोजित करें ताकि ऐसे मामलों को भविष्य में रोका जा सके।


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