भारत सरकार ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि संकट की घड़ी में वह अपने नागरिकों को कभी अकेला नहीं छोड़ती। ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते युद्ध जैसे हालात के बीच, भारत ने समय रहते तेजी से “ऑपरेशन सिंधु” शुरू किया और अपने हजारों नागरिकों को सुरक्षित वापस लाने का सफल प्रयास किया। यह एक ऐसा मिशन है, जो न सिर्फ प्रशासनिक दक्षता का परिचायक है, बल्कि भारत की वैश्विक मानवीय जिम्मेदारियों को भी दर्शाता है।
🇮🇳 3000 से अधिक भारतीयों की सुरक्षित वापसी
भारत ने मंगलवार सुबह तक ईरान और इजरायल से लगभग 3,000 भारतीय नागरिकों को निकाला। इसमें इजरायल में फंसे 600 से अधिक नागरिकों को सी-17 हेवी लिफ्ट विमान के ज़रिए वापस लाया गया। इनमें से अधिकतर को पहले सड़क मार्ग से जॉर्डन और मिस्र तक सुरक्षित पहुंचाया गया, और वहां से चार्टर्ड उड़ानों के जरिए दिल्ली लाया गया।
इजराइल से जॉर्डन होते हुए लाए गए 161 भारतीयों का पहला जत्था मंगलवार सुबह 8:20 बजे अम्मान से दिल्ली पहुंचा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इसकी जानकारी दी और बताया कि इन भारतीय नागरिकों का स्वागत विदेश राज्य मंत्री पाबित्रा मार्गेरिटा ने एयरपोर्ट पर किया।
इसी प्रकार, एक अन्य समूह में 165 भारतीयों को सी-17 विमान से वापस लाया गया। यह विमान सुबह 8:45 बजे दिल्ली में उतरा और इन नागरिकों का स्वागत राज्य मंत्री एल. मुरुगन ने किया।
मिश्र से निकासी और ऑपरेशन की रणनीति
इजराइल से मिस्र की ताबा भूमि सीमा पार करके लगभग 300 भारतीय नागरिकों को भी निकाला गया। इसके बाद उन्हें शर्म-अल-शेख से एयरलिफ्ट कर भारत लाया गया। यह पूरा अभियान बेहद जटिल था क्योंकि इस दौरान पश्चिम एशियाई देशों ने हवाई क्षेत्र पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिससे जॉर्डन से उड़ानों में विलंब हुआ।
🇮🇷 ईरान से 2,295 नागरिकों की वापसी
ईरान से भारतीयों की वापसी भी लगातार जारी है। मंगलवार को सुबह 3:30 बजे, एक चार्टर्ड विमान 292 भारतीयों को लेकर मशहद से दिल्ली पहुंचा। इसके साथ ही भारत अब तक 2,295 भारतीयों को ईरान से वापस ला चुका है। ईरान में अभी भी करीब 10,000 भारतीय नागरिक मौजूद हैं, जिनमें छात्र, तीर्थयात्री और पेशेवर कर्मचारी शामिल हैं।
तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने स्पष्ट कर दिया है कि एक भी भारतीय नागरिक को पीछे नहीं छोड़ा जाएगा। जो लोग वहां रुके हैं, उन्हें क्रमशः सड़क मार्ग से सुरक्षित क्षेत्रों में पहुंचाया जा रहा है, जहां से उन्हें भारत लाने की प्रक्रिया तेज़ी से चल रही है।
जमीन के रास्ते से रेस्क्यू की रणनीति
भारत सरकार ने पहले ही अपने नागरिकों को सलाह दी थी कि जो लोग इजरायल छोड़ना चाहते हैं, वे जॉर्डन या मिस्र की भूमि सीमाएं पार करें। वहां से उन्हें विशेष उड़ानों के ज़रिए भारत लाया जाएगा। यह निर्णय काफी रणनीतिक था क्योंकि हवाई क्षेत्र प्रतिबंधों के चलते सीधी उड़ानों की संभावना सीमित हो गई थी।
सी-17 विमान की भूमिका और लॉजिस्टिक ताकत
भारतीय वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर विमान ने इस ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाई। यह विमान न केवल बड़ी संख्या में यात्रियों को एक साथ ला सकता है, बल्कि कम समय में कई उड़ानें भरने में भी सक्षम है। इससे ना सिर्फ निकासी तेज़ हुई, बल्कि सरकार की तैयारियों और सामर्थ्य का भी प्रदर्शन हुआ।
अंतरराष्ट्रीय सियासत और भारत की स्थिति
इस ऑपरेशन के बीच एक और पहलू सामने आया — वह यह कि अमेरिका ने भारत के लिए एक ट्रैवल एडवाइजरी जारी की है, जिसमें कहा गया है कि “महिलाओं के लिए भारत सुरक्षित नहीं है।” यह बयान ऐसे समय पर आया जब अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ गर्मजोशी से रिश्ते दर्शाते हुए उसे लाल कालीन स्वागत दिया। यह भारत की विदेश नीति के सामने एक नया कूटनीतिक मोड़ है, जहां एक तरफ वह अपने नागरिकों को युद्धक्षेत्र से निकाल रहा है, वहीं दूसरी तरफ वैश्विक मंचों पर नई चुनौतियों से भी निपटना पड़ रहा है।
भारत का भरोसा और जिम्मेदारी
“ऑपरेशन सिंधु” सिर्फ एक निकासी मिशन नहीं था — यह भारत की संकट में अपनों के साथ खड़े होने की नीति का प्रमाण है। विदेश मंत्रालय, भारतीय वायुसेना, स्थानीय दूतावासों और सुरक्षा एजेंसियों का तालमेल इस अभियान को सफल बनाने में निर्णायक साबित हुआ।
निष्कर्ष
भारत ने पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष के बीच न केवल तेजी से प्रतिक्रिया दी, बल्कि सुनियोजित रणनीति और जमीन से जुड़ी कार्रवाई के जरिए यह दिखाया कि हर भारतीय नागरिक की सुरक्षा सरकार के लिए सर्वोपरि है। “ऑपरेशन सिंधु” आने वाले समय में न सिर्फ एक केस स्टडी बनेगा, बल्कि यह संदेश भी देगा कि भारत अब वैश्विक मंच पर न सिर्फ अपनी छवि को लेकर, बल्कि अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर भी गंभीरता से देखा जाता है।
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