नागरिक उड्डयन क्षेत्र में हाल ही में एक बड़ी हलचल उस समय देखने को मिली जब नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने एयर इंडिया के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से उनके पदों से हटा दिया। इनमें एक डिवीजनल उपाध्यक्ष भी शामिल हैं। यह कार्रवाई एयरलाइन के फ्लाइट क्रू शेड्यूलिंग और रोस्टरिंग से संबंधित गंभीर चूक के चलते की गई है। DGCA की इस सख्ती को हाल के वर्षों की सबसे बड़ी नियामक दखलअंदाजी माना जा रहा है।
मामला क्या है?
DGCA ने एयर इंडिया की दो उड़ानों के संचालन में नियमों के उल्लंघन को चिन्हित किया। इन उड़ानों में पायलट जोड़ी की योग्यता और नियमों का पालन नहीं किया गया था, जबकि ये कोई आपातकालीन उड़ानें नहीं थीं, बल्कि नियमित लंबी दूरी की उड़ानें थीं। नियामक ने पाया कि नागरिक उड्डयन आवश्यकता (CAR) के प्रावधानों का सीधा उल्लंघन हुआ, विशेष रूप से 24 अप्रैल 2019 की अधिसूचना के पैरा 6.1.3 के तहत निर्धारित नियमों का।
DGCA का आरोप
DGCA ने एयर इंडिया के जिम्मेदार प्रबंधक को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए सवाल किया कि क्यों न उनके खिलाफ प्रवर्तन कार्रवाई शुरू की जाए। नोटिस में साफ चेतावनी दी गई है कि अगर निर्धारित 7 दिन के भीतर उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया तो DGCA एकतरफा निर्णय लेने को स्वतंत्र होगा।
IOCC: विवाद का केंद्र
एयर इंडिया का इंटीग्रेटेड ऑपरेशंस कंट्रोल सेंटर (IOCC), जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में पायलटों और चालक दल की तैनाती का जिम्मा संभालता है, जांच के केंद्र में है। यहीं से रोस्टरिंग होती है, और यहीं से यह गलती पैदा हुई। IOCC एयरलाइन संचालन का “ब्रेन” होता है। यहीं से रियल-टाइम क्रू मैनेजमेंट, मौसम निगरानी, और मार्ग नियोजन जैसे कार्य होते हैं।
DGCA के ऑडिट ने स्पष्ट कर दिया कि IOCC में प्रणालीगत चूक हुई है — और संभव है कि कुछ नियमों को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया हो।
DGCA के नियम: क्यों हैं ज़रूरी?
DGCA द्वारा तय नियम केवल कागजी कार्रवाई नहीं हैं, बल्कि यात्रियों और चालक दल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। आइए समझते हैं कुछ प्रमुख नियम:
- पायलट योग्यता मिलान (Crew Pairing Criteria):
प्रत्येक उड़ान के लिए दो पायलटों को ऐसे जोड़ा जाना चाहिए कि उनका संयुक्त अनुभव तय मानक से कम न हो। इसमें उड़ान घंटे, पिछले अनुभव, और ऑपरेशनल योग्यता जैसे फैक्टर शामिल होते हैं। - विशेष संचालन योग्यता:
अगर कोई पायलट ऊंचाई वाले क्षेत्रों (जैसे लेह, लद्दाख) या अटलांटिक मार्गों पर उड़ान भरता है, तो उसे उसके लिए विशेष प्रशिक्षण और मंज़ूरी चाहिए होती है। - लाइसेंस और ट्रेनिंग:
यह एयरलाइन की जिम्मेदारी है कि दोनों पायलटों के पास वैध लाइसेंस हो, उनकी मेडिकल फिटनेस अप-टू-डेट हो और उन्होंने हाल ही में ज़रूरी रिफ्रेशर कोर्स किए हों। - आराम का समय (FDTL):
Flight Duty Time Limitation के तहत पायलटों को उड़ान से पहले एक निश्चित अवधि तक आराम देना अनिवार्य है। लगातार नियमों का उल्लंघन पायलट की थकावट और अंततः सुरक्षा में चूक का कारण बन सकता है।
गंभीर सवाल जो उठने लगे हैं
DGCA की कार्रवाई के बाद अब एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है — क्या यह सब गलती से हुआ या जानबूझकर? आइए कुछ अहम सवालों पर गौर करें:
1. सॉफ़्टवेयर चेतावनी क्यों नहीं देता?
आज के समय में एयरलाइनों की रोस्टरिंग पूरी तरह सॉफ्टवेयर-आधारित हो चुकी है। तो फिर अगर कोई योग्यता न पूरी हो या FDTL का उल्लंघन हो रहा हो, तो सॉफ़्टवेयर अलर्ट क्यों नहीं देता?
इसका एक ही संभावित जवाब है—या तो सॉफ़्टवेयर में गड़बड़ी है, या फिर किसी ने मैन्युअल ओवरराइड का सहारा लिया।
2. उड़ान से पहले ऐसे मुद्दों को कैसे नजरअंदाज किया गया?
उड़ान से पहले पायलटों की मेडिकल, लाइसेंस, और रेस्टरिक्शन चेक होते हैं। फिर यह कैसे संभव हुआ कि अनियमित पायलट जोड़ी को उड़ान में भेज दिया गया?
क्या सिस्टम में ‘बायपास’ करने की अनुमति है? अगर हां, तो इसका दुरुपयोग कैसे रोका जाएगा?
3. मैन्युअल ओवरराइड के संकेत?
जांच में यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या किसी खास कारण से जानबूझकर रोस्टरिंग सिस्टम को ओवरराइड किया गया। हो सकता है कोई पायलट अंतिम समय में अनुपलब्ध हो और दबाव में अस्थायी व्यवस्था कर दी गई हो। लेकिन यह संभावित हेरफेर सीधे सुरक्षा से समझौता है।
एयर इंडिया की प्रतिक्रिया
DGCA के आदेश के बाद एयर इंडिया ने बयान जारी कर कहा कि वह निर्देशों को गंभीरता से ले रही है और आदेश का अनुपालन कर लिया गया है। अब IOCC की सीधी निगरानी मुख्य परिचालन अधिकारी करेंगे। एयरलाइन ने कहा कि वह सुरक्षा मानकों और नियामकीय प्रोटोकॉल के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
निष्कर्ष: यह चेतावनी है या संकेत?
DGCA की यह कार्रवाई केवल एक नियम उल्लंघन नहीं, बल्कि नागरिक उड्डयन क्षेत्र में बढ़ती प्रणालीगत चूक की ओर इशारा है। अगर पायलट रोस्टरिंग जैसी मूलभूत प्रक्रिया में भी पारदर्शिता नहीं है, तो इसका असर सिर्फ उड़ानों की समय-सारणी पर नहीं बल्कि यात्रियों की जान पर पड़ सकता है।
यह मामला अब यह तय करने वाला है कि भारत में एयरलाइंस कितनी गंभीरता से सेफ्टी ओवर प्रॉफिट के सिद्धांत का पालन करती हैं — और DGCA जैसे नियामक कितनी सख्ती से उन्हें जवाबदेह बनाते हैं।
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