“एक तरफ भारत है, जो मुश्किल वक्त में दूसरे देशों तक भी अनाज पहुंचा देता है और दूसरी तरफ पाकिस्तान है, जो अपने ही लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं दे पा रहा।” पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ को भारत से तुलना करने से पहले ये देखना चाहिए कि उनके देश में आज भी करोड़ों लोग भूख से परेशान हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था FAO की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में करीब 1.1 करोड़ लोग भुखमरी से जूझ रहे हैं। बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा के 68 ज़िलों में हालात बेहद खराब हैं। इन इलाकों में बाढ़ के बाद करीब 22% आबादी को भूखे रहने की नौबत आ गई है। FAO की ‘ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस 2025’ ने ये चौंकाने वाला आंकड़ा पेश किया है।

“पाकिस्तान में भूखमरी की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है। FAO की रिपोर्ट के मुताबिक, वहां 17 लाख लोग इमरजेंसी यानी आपातकालीन स्थिति में हैं।” 2024 और 2025 के बीच भूख से जूझ रहे लोगों की संख्या में 38% तक की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट बताती है कि भले ही 2023 के मुकाबले थोड़े हालात सुधरे हों, लेकिन मौसम की मार अभी भी लोगों की कमाई और जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। पिछले साल नवंबर 2023 से जनवरी 2024 के बीच करीब 1.18 करोड़ पाकिस्तानी गंभीर खाद्य संकट से जूझ रहे थे। यानी वहां की बड़ी आबादी को भरपेट खाना तक नसीब नहीं हो रहा।

“FAO की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है — 2018 से 2024 की शुरुआत तक पाकिस्तान के बलूचिस्तान और सिंध जैसे इलाकों में गंभीर कुपोषण का स्तर बहुत ज्यादा रहा।” कुछ ज़िलों में तो हालात इतने खराब थे कि वहां ‘ग्लोबल एक्यूट मलन्यूट्रिशन’ (GAM) की दर 30% से भी ज्यादा रही, जबकि 10% से ऊपर की दर को ही खतरनाक माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह रही – गरीबी। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और सिंध के 43 ग्रामीण जिलों में सर्दियों के दौरान करीब 1.18 करोड़ लोग यानी लगभग 32% आबादी को गंभीर भूख और खाद्य संकट का सामना करना पड़ेगा।

“शहबाज़ शरीफ को शायद फर्क ही नहीं पड़ता! क्योंकि जिन इलाकों की हालत सबसे ज़्यादा खराब है, वहीं पाकिस्तान से आज़ादी की मांग भी उठ रही है।” FAO की रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2023 से जनवरी 2024 के बीच पाकिस्तान के इन इलाकों में 21 लाख बच्चों को गंभीर कुपोषण का सामना करना पड़ा। सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों में हालात और भी बुरे हैं। वहां न तो ढंग की सड़कें हैं, न ही इलाज की सुविधाएं। जलवायु परिवर्तन और मौसम की मार ने लोगों की ज़िंदगी और भी मुश्किल बना दी है। लेकिन पाकिस्तान सरकार का रवैया अब भी ढीला है।
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