सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बीआर गवई ने एक विशेष इंटरव्यू में न्यायपालिका, बुलडोजर कार्रवाई, न्यायिक सक्रियता और राजनीतिक दबाव जैसे गंभीर मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी। रिटायर होने के बाद दिए इस साक्षात्कार में उन्होंने कई संवेदनशील विषयों पर बेबाक टिप्पणी की।
न्यायिक सक्रियता पर स्पष्ट संदेश
जस्टिस गवई ने कहा कि न्यायपालिका का सक्रिय होना गलत नहीं है, लेकिन यह सक्रियता इतनी बढ़ न जाए कि वह “न्यायिक आतंकवाद” का रूप लेने लगे। उन्होंने कहा,“हमारा संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच स्पष्ट शक्तिविभाजन पर आधारित है। इसलिए अदालतों को अपनी सीमाओं के भीतर रहकर काम करना चाहिए।”
क्यों लोग सीधे सुप्रीम कोर्ट जाते हैं?
पूर्व CJI ने बताया कि देश में कई नागरिक सामाजिक और आर्थिक पिछड़ों के कारण अपनी शिकायतें निचली अदालतों तक भी नहीं ले जा पाते। ऐसे में यदि वे सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं तो यह गलत नहीं है।
उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से समाज के अंतिम नागरिक को आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने का संवैधानिक लक्ष्य मजबूत होता है।
बुलडोजर कार्रवाई पर पूर्व CJI का जवाब
राज्य सरकारों द्वारा अवैध निर्माणों पर की जाने वाली बुलडोजर कार्रवाई पर भी उन्होंने स्पष्ट राय रखी।
जस्टिस गवई ने कहा— “जहाँ भी किसी को लगे कि नियमों का उल्लंघन हुआ है, उसे हाई कोर्ट जाने की पूरी आज़ादी है। हमने यह भी कहा है कि यदि कोई व्यक्ति कोर्ट के आदेश की अवहेलना करता है, तो वह अवमानना का दोषी होगा।” उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि कानून के दायरे से बाहर कोई कार्रवाई न हो।















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